सब जानते


सब जानते
तू
भी कभी
मजबूत पहाड़ था ,
आज मिटता-मिटता हो गया
छोटा सा कंकर I
मगर
तनिक भी चिंता मत कर
केवल दो बातें ध्यान रखा कर
पहली बात
मौके
की तलाश में
तुझे रात-दिन फिरना है
दूसरी बात
तुझे
कब कहाँ और किसकी आँख में
कैसे गिरना है I



अमृत 'वाणी '
सेंती चित्तौड़गढ़

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शानदार! अभूतपूर्व तर्क... :P

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी कविता से प्रारंभ । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. चिट्टा के इस असीम संसार में आपका स्वागत है...

    आप लिखते रहे और अच्छा लिखते रहें.

    मेरी शुभकामनायें हैं आपके साथ.

    जवाब देंहटाएं

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