चवन्नी और अठन्नी

आज कल
जहाँ देखो वहाँ
कई मितव्ययी दांत
पराई अठन्नी को भी
इतनी जोर से दबाते हैं
कि
बेचारी अठन्नी
दबती - दबती चवन्नी बन जाती

जब भी
वह खोटी चवन्नी निकलती
इतनी तेज गति से निकलती
कि उन कंजूस सेठों का जबड़ा ही
बाहर निकल जाता
और
इस एक ही झटके में शरीर की
नस नस की बरसों पुरानी
लचक निकल जाती
फिर
फिर तो उन्हें जाना ही पड़ता
खेतों पर पसीना बहाने


उधर जो सही समय पर
सही तरीके से
लक्ष्मी के मंत्रों का जप कर रहा होता
उसके मुंह में
चवन्नी और जबड़ा
अपने आप फिट हो जाता |


फिर, फिर तो
उसकी शक्ल पहचानने में नहीं आती
और आएगी भी कैसे
क्योंकि
मुंह उसका
जबड़ा दूसरे का
चवन्नी किसी तीसरे की |

अमृत 'वाणी'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

.

counter
माँ सरस्वती Indian Architect
FaceBook-Logo Twitter logo Untitled-1 copy

  © Free Blogger Templates 'Photoblog II' by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP