जवानी
ऐसी आग है
जो आग से ही बुझती
कैसे
जैसे
लोहा लोहे को काटता है ।
आश्चर्य तो यह
जो इस आग को बुझाने आते
बड़े शौक से
रजाबंदी से
खुद भी जल जाते
वे
आग बुझाते ही रहते
और
आग उन्हें जलाती ही रहती
वे
रूक-रूक कर छींटे मारते
और आग
उन्हें
इसीलिए कई वर्षों तलक
न तो आग बुझ पाती
न पानी खत्म होता
मगर अन्त में हर आग
अपने आप ही बुझ जाती
किसी न किसी मजबूरी से
और पानी
अपने आप ही सूख जाता
बुढ़ापे की गर्मी से
मगर
तब तलक तो
उसी आग से निकली चिनगारियां
खूद ब खूद
आग बन जाती
फिर शुरू हो जाता
युगों-युगों पुराना
वही आग बुझाने का सिलसिला
यही
हर जवानी की कहानी
यही
हर जवानी की रवानी ।
बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंaap sab ka bahut bahut dhanywad jo hame protsahan diya
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