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काव्य कलश
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झूंठ फेर झूंठी कही
उूबा वे सकता नहीं ,उूबा-उूबा जाय ।
फारम भर्यो पंच को , टेको दीजो भाय ।।
टेको दीजो भाय , काले पड़सी वोट ।
मूं मां जायो बीर , कोने म्हारा में खोट ।।
के ’वाणी’ कविराज , झूंठ फेर झूंठी कही ।
जमानता भी जाय , उूबा वे सकता नहीं
।।
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