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काव्य कलश
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सलीका जीने का
इत्तफाक से
जीते जी
मिल जाए
किसी को
सलीका जीने का
फिर
एक लम्हा ही बहुत है
इस जहान में
उसके जीने का
2 टिप्पणियां:
Udan Tashtari
22 फ़रवरी 2010 को 6:44 pm बजे
सत्य वचन!
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Suman
22 फ़रवरी 2010 को 6:48 pm बजे
nice
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सत्य वचन!
जवाब देंहटाएंnice
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