सब जानते
सब जानते
तू भी कभी
मजबूत पहाड़ था ,
आज मिटता-मिटता हो गया
छोटा सा कंकर I
मगर
तनिक भी चिंता मत कर
केवल दो बातें ध्यान रखा कर
पहली बात
मौके की तलाश में
तुझे रात-दिन फिरना है
दूसरी बात
तुझे कब कहाँ और किसकी आँख में
कैसे गिरना है I
अमृत 'वाणी '
सेंती चित्तौड़गढ़
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अच्छी कविता लिखी है
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता लिखी है
जवाब देंहटाएंnarayan narayan
जवाब देंहटाएंblog jagat men swagat hai, umda rachna.
जवाब देंहटाएंBAHOOT HI SAARTHAK LIKHA HAI .... SWAGAT AI AAPKA .........
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार! अभूतपूर्व तर्क... :P
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता से प्रारंभ । आभार ।
जवाब देंहटाएंचिट्टा के इस असीम संसार में आपका स्वागत है...
जवाब देंहटाएंआप लिखते रहे और अच्छा लिखते रहें.
मेरी शुभकामनायें हैं आपके साथ.
aspasHt sandesh, va shabdaarth.
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