किसको खबर है पल की , कब तक क्या हो जाय ।
होती कमी अब जल की, कौन कहाँ तक जी पाय ।।
कौन कहाँ तक जी पाय , चले कोठियों में कुलर ।
करे फ्रीज जल-पान , तपे निर्धन इधर-उधर ।।
कह‘वाणी’ कविराज ,धरती बाँट गगन बांटो ।
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Bahut acchi muhim hai....Aabhar!!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
बिल्कुल सही....सामयिक रचना है। धन्यवाद।
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